ज़िन्दगी के रँग दोस्तों के सँग बहुत चमकीले हो उठते हैं , अगर ऐसा न होता तो मेरे स्मृति-पटल पर ज़िन्दगी की पहली याद उसकी न होती ..... कस्बे से हमारा फार्म छह किलोमीटर दूर था , रह्पुरा फार्म , बीच में हमारा घर ... घर में सब बताते हैं कि जब कस्बे में आकर रहना शुरू किया था , तभी मेरा स्कूल जाना शुरू हुआ था .... मुझ से बड़े भाई व बहन घोड़ी पर चढ़ कर स्कूल जाया करते थे ..... यानि ये याद स्कूल जाने की उम्र से पहले की थी ....
आँगन में मेरी चाची जी नल्का (हैण्ड-पम्प) चला रहीं थीं , मैं शायद हाथ पैर धो रही थी कि चाची जी ने कहा " अरे तेरी सहेली गेजो यहाँ से जा रही है ", मैनें दौड़ते हुए ड्योढी पार की और देखा कि एक बैलगाड़ी पर घर का सामान चारपाई , बिस्तर , बर्तन और बाल्टी वगैरह लदे हुए हैं .... गेजो के पिता जो हमारे मुजारों में से एक थे ( ये बात बड़े होने पर मेरी चाची जी ने ही बताई थी , बचपन क्या जाने मालिक और मुजारों का रिश्ता ) , उनकी बढ़ी हुई दाढ़ी मुझे आज भी याद है....
अर्धवृत्ताकार आठ दस कच्ची दीवारों वाले कमरे फार्म पर काम करने वालों के लिए बने हुए थे , बीच में एक बड़ा पुराना पीपल या बरगद का पेड़ था.... उन्हीं में से कोई कमरा उन्होंने खाली किया था .... मैं खाली खाली निगाहों से सब देख रही थी , मैले-मैले बालों वाली मेरी सहेली , शायद मैं उसके साथ खेला करती थी .... खेलना मुझे कहाँ याद है , हाँ उसका जाना जरुर याद है ....
एक हफ्ते के अन्दर ही मैंने एक दिन दोपहर में अपनी माँ से जिद की कि मुझे सैंजने की दुकान से कुछ खाने की चीज दिलवाओ.... सैंजना एक गाँव था जो हमारे फार्म के सामने की नहर पार करने के बाद शायद एक दो किलोमीटर दूर था.... वहाँ जरुरत का सामान मिल जाता था , मुझसे छह साल बड़े भाई साहेब के साथ मुझे भेजा गया , रास्ते भर डपटते रहे , इतनी तेज धूप में कुछ खाना क्या जरूरी है ?
खैर, नहर के किनारे-किनारे चलते हुए खजूर के पेड़ दिखे , हम दोनों ने वहाँ गिरी हुई कुछ सूखी खजूरें खाईं , आगे चले , सैंजना पहुँच कर मुझे मूँगफली दिलवाई ....
भाईसाहेब ने पूछा " गेजो से मिलना है क्या ?"
"हाँ हाँ " मैंने कहा
मैं सोचती हूँ मेरे दिल में जरुर उससे मिलने की चाह रही होगी जो मैनें सैंजना जाने की जिद की थी , मुझे मालूम रहा होगा कि गेजो के पिता सैंजना आ कर रहने लगे हैं .... पता करके उनकी झोपड़ी के पास पहुँचे , मगर ये क्या , एक तरफ़ की दीवार ढही हुई थी , वहाँ कोई न था , कुछ पता न चल सका कि वो काम पर कहाँ गए हुए थे .... बस भाई साहेब मुझे लौटा लाये ....
अपने दिमाग पर जोर डालती हूँ तो फार्म पर बिताई हुई उम्र में से ये दोनों ही बातें याद आती हैं और कुछ नहीं .... तब बहुत छोटी थी , आज जिन्दगी का सार निकालने बैठी हूँ तो लगता है कि...
..दोस्ती ऐसा जज़्बा है , न मिले तो
ऐसा लगता है , अरसा हुआ ज़िन्दगी से मिले
आँगन में मेरी चाची जी नल्का (हैण्ड-पम्प) चला रहीं थीं , मैं शायद हाथ पैर धो रही थी कि चाची जी ने कहा " अरे तेरी सहेली गेजो यहाँ से जा रही है ", मैनें दौड़ते हुए ड्योढी पार की और देखा कि एक बैलगाड़ी पर घर का सामान चारपाई , बिस्तर , बर्तन और बाल्टी वगैरह लदे हुए हैं .... गेजो के पिता जो हमारे मुजारों में से एक थे ( ये बात बड़े होने पर मेरी चाची जी ने ही बताई थी , बचपन क्या जाने मालिक और मुजारों का रिश्ता ) , उनकी बढ़ी हुई दाढ़ी मुझे आज भी याद है....
अर्धवृत्ताकार आठ दस कच्ची दीवारों वाले कमरे फार्म पर काम करने वालों के लिए बने हुए थे , बीच में एक बड़ा पुराना पीपल या बरगद का पेड़ था.... उन्हीं में से कोई कमरा उन्होंने खाली किया था .... मैं खाली खाली निगाहों से सब देख रही थी , मैले-मैले बालों वाली मेरी सहेली , शायद मैं उसके साथ खेला करती थी .... खेलना मुझे कहाँ याद है , हाँ उसका जाना जरुर याद है ....
एक हफ्ते के अन्दर ही मैंने एक दिन दोपहर में अपनी माँ से जिद की कि मुझे सैंजने की दुकान से कुछ खाने की चीज दिलवाओ.... सैंजना एक गाँव था जो हमारे फार्म के सामने की नहर पार करने के बाद शायद एक दो किलोमीटर दूर था.... वहाँ जरुरत का सामान मिल जाता था , मुझसे छह साल बड़े भाई साहेब के साथ मुझे भेजा गया , रास्ते भर डपटते रहे , इतनी तेज धूप में कुछ खाना क्या जरूरी है ?
खैर, नहर के किनारे-किनारे चलते हुए खजूर के पेड़ दिखे , हम दोनों ने वहाँ गिरी हुई कुछ सूखी खजूरें खाईं , आगे चले , सैंजना पहुँच कर मुझे मूँगफली दिलवाई ....
भाईसाहेब ने पूछा " गेजो से मिलना है क्या ?"
"हाँ हाँ " मैंने कहा
मैं सोचती हूँ मेरे दिल में जरुर उससे मिलने की चाह रही होगी जो मैनें सैंजना जाने की जिद की थी , मुझे मालूम रहा होगा कि गेजो के पिता सैंजना आ कर रहने लगे हैं .... पता करके उनकी झोपड़ी के पास पहुँचे , मगर ये क्या , एक तरफ़ की दीवार ढही हुई थी , वहाँ कोई न था , कुछ पता न चल सका कि वो काम पर कहाँ गए हुए थे .... बस भाई साहेब मुझे लौटा लाये ....
अपने दिमाग पर जोर डालती हूँ तो फार्म पर बिताई हुई उम्र में से ये दोनों ही बातें याद आती हैं और कुछ नहीं .... तब बहुत छोटी थी , आज जिन्दगी का सार निकालने बैठी हूँ तो लगता है कि...
..दोस्ती ऐसा जज़्बा है , न मिले तो
ऐसा लगता है , अरसा हुआ ज़िन्दगी से मिले
दोस्ती के ऐसे ही पहलू जिंदगी को समेटते हैं.... जो की एक तोहफे के रूप में मिलता है....
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा संस्मरण ।होली की हार्दिक शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंसुधियों की सुधि लीजिये, बिसर जायेगी पीर.
जवाब देंहटाएंधूप छाँव बरखा सहें, हँस- बिन हुए अधीर..
सुधियों के दोहे 'सलिल', स्मृति-दीर्घा जान.
कभी लगें अपने सगे, कभी लगें मेहमान..
achchha laga. padhiye- sudhiyon ke dohe: divyanarmada.blogspot.com par
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जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लिखा आपने !
जवाब देंहटाएं________________
'पाखी की दुनिया' में इस बार माउन्ट हैरियट की सैर करना न भूलें !!
मैंने अभी पढ़ा। अच्छा लगा बचपन का संस्मरण - अगर अब तक याद न रहा होता तो कैसे लिखा जाता?
जवाब देंहटाएंबचपन की यादें गहरी होती ही हैं…
सच्चा दोस्त जिंदगी का सबसे प्यारा तोहफा होता है।
जवाब देंहटाएं................
नाग बाबा का कारनामा।
महिला खिलाड़ियों का ही क्यों होता है लिंग परीक्षण?
बढ़िया संस्मरण ..
जवाब देंहटाएंटेम्पलेट के साथ मुझे यह संस्मरण बहुत अच्छा लगा....
जवाब देंहटाएंacha laga apke is blog par aakar..
जवाब देंहटाएंmam aap ne sach kaha zindgi k rang dosto k sang..
जवाब देंहटाएंगाँव की खुशबू एहसास करा दी वह भी ५०-६० के दशक की, ग्रामीण समरसता, रिस्तों की गर्माहट, अपनेपन के लिए फ़ुरसत, न जाने कितनी चीजे मन में घुड़ गयी आप का लेख पढ़ने के बाद ।
जवाब देंहटाएंHappy Republic Day..गणतंत्र िदवस की हार्दिक बधाई..
जवाब देंहटाएंMusic Bol
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आपके साथ-साथ हमारा जाना भी हुआ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा संस्मरण|
जवाब देंहटाएंपूरा पढ़ा आपका संस्मरण , अच्छा लगा पुरानी यादों में डूबना !
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको
दिन मैं सूरज गायब हो सकता है
जवाब देंहटाएंरोशनी नही
दिल टू सटकता है
दोस्ती नही
आप टिप्पणी करना भूल सकते हो
हम नही
हम से टॉस कोई भी जीत सकता है
पर मैच नही
चक दे इंडिया हम ही जीत गए
भारत के विश्व चैम्पियन बनने पर आप सबको ढेरों बधाइयाँ और आपको एवं आपके परिवार को हिंदी नया साल(नवसंवत्सर२०६८ )की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ!
आपका स्वागत है
"गौ ह्त्या के चंद कारण और हमारे जीवन में भूमिका!"
और
121 करोड़ हिंदुस्तानियों का सपना पूरा हो गया
आपके सुझाव और संदेश जरुर दे!
This excerpt givea a memorable halt in such a fast running life.
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया
जवाब देंहटाएंyaadein zindgi ke wo pehlu hoti hain, jo hasati bhi hai or kabhi rulaati bhi hai.. very nice..
जवाब देंहटाएंमेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है : Blind Devotion - सम्पूर्ण प्रेम...(Complete Love)
लाज़वाब! बहुत सुंदर प्रस्तुति...
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