राजसागर के दोनों बेटों ने अभी स्कूल जाना शुरू ही किया था कि राजसागर की पहली पत्नी की मृत्यु हो गई थी। वो पुलिस में ऊँचे ओहदे पर थे ,जमीन जायदाद की कमी न थी ; दुबारा शादी होने में देर न लगी। ये पत्नी नये ज़माने के चाल-ढाल में ढली थी। घर में कहीं कोई कमी न थी।
नई माँ को ये दोनों बच्चे फूटी आँख न सुहाते। जल्दी ही दोनों लड़कों का दाखिला दूर के शहर में शान्ति निकेतन बोर्डिंग-स्कूल में करा दिया गया। अब दोनों बच्चे छुट्टी में घर आते भी तो उन्हें फार्म पर रहने भेज दिया जाता ,जहाँ वो खेती के काम पर भी नजर रखते और गाय भैंसों के पालन पर भी। बड़ी हसरत से कभी घर आते भी तो नई माँ द्वारा तुरन्त ही वापिस खदेड़ दिये जाते।
घर में सदस्यों की बढोत्तरी हुई। जब तक ये दोनों बड़े बेटे कॉलेज की क्लास में आये ,नई माँ के दोनों बेटे और एक बेटी स्कूल जाने लग गए थे। ये दोनों छोटे भाई बहनों को देख कर बहुत खुश होते थे मगर उनकी किस्मत में छोटे भाई-बहनों के साथ मानाने के लिये कोई त्यौहार ,कोई रक्षा-बन्धन या भैय्या-दूज न थे।राजसागर उन्हें पैसे-कपडे-लत्ते तो वक़्त पर भिजवा दिया करते थे ; मगर रोबीले होने के बावजूद अपनी मार्डन पत्नी के सामने उनकी एक न चलती। अपने ही बच्चों से उनके दिल की बात कहने-सुनने का वक्त उन्हें न मिलता।
दिन इसी तरह गुजर रहे थे कि उस साल गर्मियों की छुट्टियों में उनकी पत्नी ने सपरिवार श्रीनगर घूमने जाने की योजना बनाई। सपरिवार में ये दोनों बच्चे तो शामिल हो ही नहीं सकते थे। जिस दिन जाना था उस दिन ही राजसागर को कचहरी में किसी केस के सिलसिले में जाना था। अब क्योंकि होटल ,टैक्सी सब पाँच दिन के लिये बुक किये जा चुके थे ;उनकी पत्नी ने तय किया कि राजसागर अगले दिन वहाँ पहुँच जाएँ और ये सब लोग अपने तय प्रोग्राम के अनुसार श्रीनगर चले जायेंगे।
जाने का दिन भी आ गया ;सब ख़ुशी-ख़ुशी सफर पर रवाना हो गये। 15 घण्टे का सफर तय कर के श्रीनगर पहुँचे ; कमरों में सामान रखवाया और लाउंज में आ कर बैठे। बेहद थके थे ,चाय मँगवाई गई। मौसम खराब तो पहले से ही था। बारिश इस वक़्त कुछ रुकी सी थी ,रास्तों में कई जगह मलबे के अवरोध भी थे ; मगर ऐसा अन्दाजा न हो सकता था कि कुछ ज्यादा गड़बड़ भी हो सकती है। अचानक जोर की गड़गड़ाहट की आवाज हुई और पहाड़ का बड़ा हिस्सा टूट गया और पूरे होटल को अपने चपेट में लेता गया। और लोगों के साथ ये पूरा परिवार भी कुछ ही सेकेंड्स में काल का ग्रास बन गया। विधि का ये कैसा विधान था कि ये कहानी जैसे शुरू हुई थी वैसे ही मिटा डाली गई।
राजसागर को दुःख तो बहुत हुआ मगर यहाँ वो बिलकुल असहाय थे। घर पर अकेले थे इसलिए बड़े बच्चों को घर ले आये। अब तय किया गया कि बड़े बेटे की शादी की उम्र हो चली है और घर पर भी चुप्पी ही पसरी है तो उसकी शादी कर दी जाये। अपनी ही रिश्तेदारी की एक बेटी से शादी करा कर घर ले आये। दोनों बेटे पढ़ाई पूरी कर चुके थे। उनकी जायदाद काफी थी। दुकानें किराये पर थीं। दूध,सब्जियां इत्यादि फार्म से ही आते थे। बच्चों ने सब काम सँभाल लिये . याद उन्हें भी बहुत आती कि वो छोटी बहन आज जिन्दा होती तो शायद किसी दिन उन्हें राखी बाँधती ;मगर विधाता का विधान भला कोई समझ सका है।