उमेश से शादी करके वो नई-नई उस गाँव में आई थी । घर के पीछे दूर जहाँ तक नज़र जाती थी , उनके खेत थे ।घर खुशहाल था , कहीं कोई कमी तो नज़र नहीं आती थी ।उमेश भी लम्बा-ऊँचा छह फुट का जवान था ।यूँ तो उसे घर में मम्मी , पापा , देवर , बहन किसी से भी कोई शिकायत नहीं थी ।
शादी के एक दो हफ़्ते बाद ही सुनीता उखड़ी-उखड़ी सी रहने लगी ।किसी काम में मन न लगता ।मायके गई तो माँ ने पूछा भी मगर कुछ बताया नहीं ।बस आँख में आँसू भर आये ।बेमन से वापिस आई ।सास-ससुर को भी कुछ-कुछ अन्देशा हो गया था कि वो खुश नहीं है ।
एक बार भाई लेने आया तो वो फिर आगरा गई । कुछ दिन बाद उमेश उसे वापिस लेने आया तो माँ ने दोनों का बिस्तर एक कमरे में लगाया तो सुनीता रोने लग गई और उस कमरे में सोने से आनाकानी करने लगी ।माँ को बहुत कुछ समझ आ गया था कि उसकी बेटी को ऐसी ही किसी वजह से कोई घुन अन्दर ही अन्दर खा रहा था । उसने बेटी से पता लगाने और समझाने की कोशिश की । बेटी ने कहा माँ मुझे बचा लो , मुझे वहाँ नहीं जाना ।उमेश बड़े प्यार से उसे विदा करा लाया । माँ की आँखों ने सच देख कर भी अनदेखा कर दिया ।
फिर एक दिन सुनीता ने माँ को रोते हुए फ़ोन पर कहा कि माँ मेरा तलाक़ करवा दो । मैं और यहाँ नहीं रह सकती ।उमेश के माँ बाप भी कुछ बोल नहीं पा रहे थे ।शादी को छह महीने बीत चुके थे ।उमेश ने कहा कि ठीक है तुम्हें जाना है जाओ ; मगर मैं तुम्हें मय सामान (दहेज ) के आगरा तक पहुँचा आऊँगा । बोलो किस दिन चलना है ? फिर ख़ुद ही कहा कि अगले हफ़्ते मैं ख़ाली हूँ , तुम भी पैकिंग कर लो ।
सुनीता सोचती ये तो बहुत आसानी से मान गया और कहीं वो ख़ुद ही बुरी तो नहीं ।अगले ही पल उस बोझिल ज़िंदगी को और ढोना उसे मुश्किल लगता ।
उमेश पास वाले क़स्बे से आगरा फोर्ट ट्रेन की पूरी बोगी बुक करवा आया । जाने का दिन आ गया ।दहेज का सारा सामान फ़र्नीचर, कपड़े-लत्ते सब ट्रैक्टर ट्रॉली में लद कर स्टेशन पहुँच गए । ट्रेन के आते ही सब लाद दिये गए और दोनों कूपे में बैठ गए ।दरवाज़े बोल्ट कर दिये गये ।
आठ बजे दोनों ने घर से लाया हुआ ख़ाना खाया । आधी रात का वक्त रहा होगा , नींद किसी को नहीं आ रही थी । ट्रेन पूरी स्पीड से दौड़ रही थी ।उमेश उठा और सुनीता को एक आख़िरी बार गले लगाया ।बोला कि मुझसे दूर जाना चाहती हो , मगर मैं तुमसे दूर नहीं रह सकता । कहते ही उसने देसी पिस्तौल निकाल ली ।सुनीता बेतहाशा डर गई । नहीं-नहीं तो उसके गले में ही फँस कर रह गई ।उसे मार कर उमेश ने दूसरी गोली अपने सीने में उतार ली ।दोनों ढेर हो गये।
सुबह ट्रेन आगरा पहुँच चुकी थी । सुनीता के पापा और भाई उसे लेने आये थे । बन्द बोगी से कोई नहीं उतरा ।दरवाज़ा तोड़ना पड़ा ।
ये कैसा ऑब्सेशन था ।ये सब पूर्व नियोजित था । ट्रेन की बोगी बुक कराने के साथ ही उसने देसी कट्टा भी ख़रीद लिया था ।क्या आदमी के मन की थाह पाई जा सकती है ! इस हद तक जाना कि ख़ुद को भी ख़त्म कर लेने की योजना बना लेना और किसी को इल्म तक न होने देना ।सैकड़ों सवाल उठे मगर उत्तर देने वाले अब दुनिया में नहीं थे ।
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