शुक्रवार, 26 सितंबर 2025

धुँधली सी राहें

नीरा बैठी याद कर रही थी कि उसका परिवार कितना खुशहाल था ।रवनीत के पिता एक बड़े ओहदे से रिटायर हुए थे ।घर में सुख-सुविधाओं की कोई कमी न थी ।रवनीत वकील था और प्रैक्टिस भी अच्छी चल निकली थी ।दो बेटियाँ थीं ,बड़ी प्राइमरी स्कूल में थी और छोटी अभी एक साल की ही हुई थी ।अब तीसरी प्रेगनेंसी इतनी जल्दी ठीक नहीं थी ।घर में सबकी सलाह बनी कि टर्मिनेट करवा दी जाये ।करवा दी गई , मगर अब दिल अफ़सोस के सिवा कुछ न कर सकता था ।भारतीय घरों में बेटियों से बहुत लाड़-प्यार तो किया जाता है , ये सच भी है कि बेटियां माँ-बाप के दुख को खूब बारीकी से समझती हैं ;साथ ही बेटों का मोह भी कम नहीं है ।क्योंकि ये सोचा जाता है कि बेटे के घर पर माँ-बाप जिस हक़ से रह सकते हैं उतना बेटियों के घर पर नहीं ।इसीलिए नीरा एक अजीब असुरक्षा की भावना से घिर उठती ।काश उस प्रेगनेंसी से उसका बेटा होता और वो उसकी आँखों में अपने पति का चेहरा तलाश पाती ।


अब जब रवनीत इतने बड़े हादसे का शिकार हो कर जान गँवा बैठा तो ज़िन्दगी में उसे कोई राह ही नजर नहीं आती ।माँ बाप के बुढ़ापे का सहारा , बेटियों का भविष्य , नीरा की आँखों के आगे अंधकारमय डगर और वो अपनी पंगु सी असहाय अवस्था में अपने दिल का हाल भी किसी से न कह पाती ।


रवनीत क्रिमिनल केसेस का वकील था ।न जाने किस कुघड़ी उसने एक ऐसे ग्रुप का केस लड़ने का फैसला हाथ में ले लिया , केस क्योंकि दोषी लोगों का था तो केस हार गया ।अब अगले कोर्ट में केस लगा ।वो उस दिन दूसरे शहर में तारीख पर गया हुआ था , रात को वापस लौट जाना था ।ग्रुप के लीडर ने फ़ोन किया कि रात की ट्रेन पकड़ो और लखनऊ आ जाओ ।बस इतनी ही बात चलते-चलते उसने घरवालों को बताई थी उसके बाद फ़ोन स्विच ऑफ हो गया ।अगले दिन भी न तो फ़ोन से बात हो सकी न ही कोई ख़बर मिली । मिसिंग की शिकायत दर्ज कराई ।लखनऊ पुलिस शिरकत में आ गई ।इधर रवनीत के पापा के पास कॉल आई अमुक राशि दो तब ही छोड़ेंगे ।इतना कैश था ही नहीं न ही इतना बैंक बैलेंस था ।दिन बीतते जा रहे थे , आख़िर ये तय हुआ कि घर बेच कर या गिरवी रख कर बाक़ी राशि इक्कठा कर ली जाए ।पाँच दिन बीत चुके थे , कहीं कोई सुराग नहीं मिल रहा था । मगर ये समझ आ गया था कि अपहरणकर्ता कौन थे और कितने ख़तरनाक थे ।चेन्नई से रवनीत के जीजा जो डी.एस.पी. थे ख़ुद लखनऊ आ कर सर्च ऑपरेशन में भाग-दौड़ कर रहे थे ।दिन रात एक कर दिया था ।फिर लखनऊ के बाहर बाग-बगीचे ,बंद पड़ी फैक्टरियाँ चप्पा-चप्पा खोजने लगे ।एक बंद पड़ी फैक्ट्री में एक टैंक को ताजा-ताजा सीमेंट से सील किया हुआ था और उसमें एक हाथ जिसमें अंगूँठी भी थी बाहर निकला हुआ था और ये हाथ रवनीत का था ।उफ़्फ़ , उसे जिन्दा दफ़ना दिया गया था ।


रवनीत के पापा को दामाद ने फ़ोन किया तो पापा ने कहा कि हमने पैसा इक्कठा कर लिया है बस अब उनका आदमी आ कर ले जाएगा ।अब दामाद ने कहा कि पापा पैसे नहीं देने , ये थाने में भाई की बॉडी मेरे सामने पड़ी है ।और बस कोहराम मच गया ।


इस ग्रुप को अपनी हार बर्दाश्त नहीं थी , और उन्होंने वकील को ही खत्म कर अपना डर बनाने की कोशिश की । रवनीत को कई दिन नशे के इंजेक्शंस दे कर सुला कर रखा गया था , पैसे अलग हड़पने की कोशिश की गई थी।सिर्फ एक ज़िन्दगी नहीं ख़त्म हुई थी उससे जुड़े सभी लोग एक ऐसे मोड़ पर आ कर खड़े हो गये थे कि सब धुँधला दिखाई देता था।सब रो-रो कर भी हार चुके थे ।ज़िन्दगी को आगे चलना था बस वही गबरू जवान छोड़ कर जा चुका था ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

फ़ॉलोअर

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
एक रिटायर्ड चार्टर्ड एकाउंटेंट बैंक एक्जीक्यूटिव अब प्रैक्टिस में ,की पत्नी , इंजिनियर बेटी, इकोनौमिस्ट बेटी व चार्टेड एकाउंटेंट बेटे की माँ , एक होम मेकर हूँ | कॉलेज की पढ़ाई के लिए बच्चों के घर छोड़ते ही , एकाकी होते हुए मन ने कलम उठा ली | उद्देश्य सामने रख कर जीना आसान हो जाता है | इश्क के बिना शायद एक कदम भी नहीं चला जा सकता ; इश्क वस्तु , स्थान , भाव, मनुष्य, मनुष्यता और रब से हो सकता है और अगर हम कर्म से इश्क कर लें ?मानवीय मूल्यों की रक्षा ,मानसिक अवसाद से बचाव व उग्रवादी ताकतों का हृदय परिवर्तन यही मेरी कलम का लक्ष्य है ,जीवन के सफर का सजदा है|