मुझे इमली या इमली के पेड़ ने कभी रिझाया नहीं , क्योंकि बहुत खट्टी चीजों के प्रति मेरा रुझान कभी नहीं रहा ; बल्कि वो मेरे दाँत ही खट्टे कर जाती हैं और अगले वक्त का खाना भी दूभर हो जाता है ।मगर हाँ बचपन की तरफ़ जाती हूँ तो एक इमली का बहुत बड़ा और पुराना पेड़ मुझे जरूर याद आता है , जो मेरी बचपन की सहेली के घर के सामने एक बड़ी सी ख़ाली जगह में था ।मैंने शायद कभी-कभार ही दूसरे बच्चों की देखा-देखी पेड़ के नीचे गिरी हुई इमली उठाई हो , मुझे ज़्यादा कुछ याद नहीं आता ।हाँ उस सहेली की याद आते ही आँखें नम जरूर हो जाती हैं ।
उसका नाम मधु था , मेरा घर मेरे स्कूल के ठीक सामने जैसे ही था , हमारे ही खेतों के बीच , बस थोड़ा सा हट कर । वो अक्सर शाम को मेरे घर आती ।फिर हम घूमते-घामते, खेलते हुए बिना बाउंड्री वाले अपने स्कूल में पहुँच जाते ।सातवीं-आठवीं क्लास थी स्कूल के एक किनारे नहर थी और हम दोनों पैर लटकाए बातें करते ।हम तो अभी दुनिया को ही समझ रहे थे , ज़्यादा तो बातें भी नहीं थीं हमारे पास , हैरानियाँ ज़्यादा थीं ।
उसके पिता एक सुनार थे , उन्हें साइकिल के पीछे एक सन्दूकची रखे सुबह-शाम दुकान की तरफ़ आते-जाते हमने अक्सर देखा था ।उस जमाने में सुनार भी आज जितने अमीर नहीं हुआ करते थे । उस पर उसकी पाँच ,छह बहनें और सबसे छोटा भाई ,इनके भरण-पोषण का भार उसके पिता की कमर तोड़ दे रहा था , ऐसा मैं आज समझ सकती हूँ ।उन्होंने किसी तरह पहले से बने हुए मकान में ही कुछ कमरे और नीचे बनवाए और उसके ऊपर ही दो कमरे अपने लिए बनवा लिए । नीचे के सब कमरों में अतिरिक्त आमदनी के लिए किरायेदार रख लिए ।उस से बड़ी बहन को उन्होंने एक दर्जी से ब्याह दिया था जो उस से उम्र में काफ़ी बड़ा और मोटा भी था ।
हमने दसवीं क्लास ही पास की थी कि पता चला कि मधु की शादी हो गई , लड़का दिल्ली का है । शायद शादी के कुछ महीनों बाद वो रहने के लिए मायके आई थी कि मेरी चाची जी ने मुझे और मेरी चचेरी बहन को कहा कि मधु आई हुई है तुम लोग उस से मिलने नहीं जाओगी ? हमारा जॉइंट परिवार था तो हम लोग इक्कठे रहते थे , मैं और मेरी चचेरी बहन उस से मिलने गए ।हम जिस चहकती हुई मधु से मिलने गए थे वो तो कहीं थी ही नहीं ।निराश बुझी हुई खोई-खोई सी आँखें , न वो कुछ बोल रही थी न पूछ रही थी ।उसकी माँ ने ही कोई बात छेड़ी तो पता चला कि उसका पति खड़े-खड़े ही उस पर हाथ चला देता है , पानी भी पी रही होती तो हाथ से गिर जाता है ।बिना वजह हर वक्त डाँट….भाई बहनों में सबसे खूबसूरत थी ये मधु । हमसे तो कुछ कहते ही नहीं बना । माँ-बाप ने उसे फिर भी ससुराल भेज दिया ।शायद बाक़ी बच्चों की जिम्मेदारी से भी वो घबराए हुए थे । शायद उसका पति किसी मनोरोग से ग्रस्त था , इतनी छोटी उम्र में शादी और ऐसे हाल को निभाना मधु के ऊपर तो वज्रपात हो गया होगा।
आज भी याद करती हूँ तो रोबोट सी चलती-फिरती मधु को ही याद कर पाती हूँ जिसने एक-एक दिन युगों जैसा गुजारा होगा उस इमली के पेड़ के ठीक सामने वाले घर में रहने वाली ।आह कोई उसकी हालत सुधार पाता , बाद में हम कभी नहीं मिले , कौन जाने वो कितना जी पाई।मैं दसवीं क्लास के बाद आगे की पढ़ाई के लिए हॉस्टल चली गई थी , अजीब सी मनस्थिति हो आई थी जिस शादी की बात पर लड़कियां कितने सपने सँजो लेती हैं उन सपनों का ये हश्र हो …मुझे उसकी वीरानी का अंदाज़ा हो रहा था , उसकी पथराई हुई आँखें मेरे सीने में ठहर सी गईं ।
कम पढ़ाई की वजह से न वो आत्मनिर्भर हो सकती थी , न पिता के घर लौट सकती थी न ही अपने पति की संभाल कर सकती थी और अगर वो जान बूझ कर उसे सताता था तो न ही उसे सुधार सकती थी ।उसके दर्द , लाचारी , बेबसी और नैराश्य से उपजे अवसाद को महसूस किया मगर अपने असहाय होने का दर्द भी महसूस किया । मैं कितना भी चाह लेती उस वक्त तो मैं ख़ुद भी समाज में सामने आ कर बोलती तो किनारे कर दी जाती , फिर एक जमींदार परिवार में पली तो घर की चारदीवारी से बाहर की दुनिया मैंने उतनी देखी ही नहीं थी । आज मेरा लेखन है तो ऐसे सारे अनुभवों की बदौलत ही ।इमली के पेड़ से जुड़ी मेरी सारी यादें खट्टी और कसैली हैं ।
